हमर देस ह बैदिक काल ले आज तलक साहित्य के छेत्र म समरिध हावय चाहे वो जब हिन्दील भाखा के जननी देव बानी संसकिरीत रहय जेमा बालमिकी के रामायन होवय, चाहे बेदबियास के महाभारत, चाहे कालीदास के अभिज्ञान साकुंतलम होवय। ओखर बाद जब हिन्दीत भाखा अवतरित होईस त ओमा घलो एक से बढ़के एक साहित्यकार, कवि हावय। हिन्दीत भाखा के भीतर म घलो अवधि, बरज, खड़ी बोली,छत्तीसबढ़ी भाखा म आथे।
आचार्य रामचंद्र सुक्ल जी ह हिन्दीं साहित्य कि इतिहास ल चार काल म बांटे हावय बीरगाथाकाल जेला आदिकाल घलो कईथन, भक्तिकाल, रीतिकाल अउ आधुनिक काल। भक्तिकाल ल हिन्दीत साहित्य के स्वर्ण काल घलो कहे जाथे काबर के ये काल म सबले जादा साहित्य रचना करे गे रहिस। भक्तिकाल म दो परमुख धारा रहिस। पहिली सगुन भक्तिधारा अउ दूसर निरगुन भfक्ताधारा। सगुन भक्तिधारा के भी दो साखा रहिस राम भक्ति साखा अद किसन भक्ति साखा। राम भक्ति साखा के परमुख कबि तुलसीदास जी रहिन। अउ किसन भक्ति साखा के परमुख कबि सूरदास जी रहिन। साहित्यकार अउ कवि मन समाज घलो ल अपन रचना के माध्यम से सुधार करे के कोसिस करथे। साहित्य ह समाज के अईना होथे अउ साहित्यकार मन समाज ल अईना दिखाये के काम करथे, जेखर ले समाज म फैले बुराई अउ अंधबिसवास ह धीरे-धीरे खतम होथे।
गोस्वामी तुलसीदास जी भक्तिकाल के सगुनधारा के रामभक्ति साखा के प्रतिनिधि कवि माने जाथे। वो ह एक कवि, भक्त अउ समाज सुधारक के रूप म स्वीकार करे जाथे। वो ह हिन्दीत साहित्य के गौरव और भारतीय संसकिरिती के रछक कहे जा सकत हे। ओखर हर रचना ह भारतीय धरम अउ आस्था के परतीक बन गे हावय। तुलसीदास जी ल देस-बिदेस के आलोचक मन मुक्त कंठ ले बढ़ाई करे हावय।
कविता करके तुलसी न लसे,
कविता लसी पा तुलसी की कला। ‘हरिऔध’
जन्म अउ मरन- तुलसीदास जी जनम अउ अस्थान के बारे म लोगन मन के कई मत हावय। हिन्दीय के इतिहासकार डा. ग्रियरसन के अनुसार तुलसीदास जी के जनम बछर 1532 (संवत् 1589) म उत्तरपरदेस के बांदा जिला के राजपुर गांव म होय रहिस। वो ह सरयूपरायन बाम्हन रहिन। वोखर ददा के नाव आत्माराम दुबे अउ दाई के नाव हुलसी रहिस। तुलसीदास जी बचपना ह बहुत कठिनाई म बितीस। वोखर दाई-ददा ह वोला मूल नछत्र म जनमे के कारन तियाग दिहिस। सेस सनातज जी की किरपा ले बेद, पुरान, उपनिसद, दरसन ल खूब पढ़िस। कहे जाथे के तुलसीदास जी अपन गोसाईन बर अब्बड़ मया करत रहिस। पर जब ओखर गोसाईन ह वोखर, अपन उपर आसक्ति ल देखिस त ओला फटकारिस ते मेरा ले तुलसीदास जी जीवन दिसा ही बदल गे। ओ ह अपन जीवन ल राम के भक्ति म लगा दिस। संवत् 1680 याने बछर 1623 म इंखर देहांत हो गे।
रचनाः- नागरी परचारनी सभा कासी ह इंखर परमारिक रचना मन ल परकासित करे हावय जे ह ये परकार ले हे- रामचरित मानस, रामलला नहछु, बैराग्य संदीपनी, बरवै रामायन, पारवती मंगल, जानकी मंगल, रामाज्ञाप्रस्न, दोहावली, कवितावली, गीतावली, सिरी किस्न गीतावली, बिनय-पत्रिका, सतसई, छंदावली रमायन, कुंडलिया रमायन, राम सलाका, संकट मोचन, करखा रमायन, रोला रमायन, झूलना, छप्पय रमायन, कबित्त रमायन, कलिधरमाधरम निरूपन, हनुमान चालीसा।
‘एन साईक्लोपिडिया आॅफ रिलीजन एंड एथिक्स’ म घलो हिन्दीय साहित्य के इतिहारकार डा.ग्रियरसन ह ये पहली बारह रचना के बरनन करे हावय।
राममचिरतमानस परबंध काब्य के आदरा प्रस्तुत करथे त दूसर कोती बिनय-पत्रिका ह मुक्तक सैली म रचे गे सबसे बढ़िया गीति काब्य हे।
काब्यगत बिसेसता- तुलसीदास जी के काब्य के सबसे बड़े बिसेसता समन्वय के भावना ये। उंखर काब्य म समन्वय के बिराट चेस्टा हे। अपन समन्वयवादी नजरिया के कारन ही तुलसीदास जी लोकनायक के आसन पर आसीन हावय। तुलसीदास जी ल लोेकनायक भी कहे गे हावय।
हजारी परसाद द्विवेदी जी उंखर बारे म लिखथे के ‘‘ लोक नायक वही हो सकत हे जो समन्वय कर सके, काबर के भारतीय जनता म नाना परकार के परस्पर बिरोधी संसकिरिती, साधना, जाती, आचार निस्ठा अउ बिचार पद्वति प्रचलित हावय। बुद्व देव समन्वयवादी रहिस। गीता म समन्य् के चेस्टा हे अउ तुलसीदास जी घलो समन्वयकारी रहिन।’’
लोक संगरह के भाव तुलसीदास जी के भक्ति के परमुख अंग रहिस। जेखरकारन वोखर भक्ति किस्न भक्त कबि के जईसे एकांगी न होके सरवांगपून हे। वो ह अवधी भाखा म अपन रचना ल लिखिस।
तुलसीदास अउ रामचिरतमानस – रामचरितमानस हिन्दीत साहित्य म ही नहीं बक्ति पूरा बिस्व साहित्य म अपन महत्वपून अस्थान रखथे। ये ह एक परकार ले भारतीय जीवन के प्रतिनिधि गरंथ हे। जेला तुलसीदास जी ह संवत् 1631 म अजोध्या म लिखे रहिस। देवयोग से वो बछर रामनवमी के दिन वईसनहे ही योग बने रहिस जईसना त्रेताजुग म भगवान राम के जनम के दिल रहिस। वो दिन बिनसरहा तुलसीदास जी ह रामचरितमानस के रचना लिखे बर सुरू करिन जेहा दू बछर सात महिना अउ छब्बीस दिन म पूरा होईस। ये गरंथ के मूल आधार बाल्मिकी जी लिखे गये महाकाब्य रामायन हे। लेकिन तुलसीदास जी ह येला अपन कल्पना अउ प्रतिभा के बल म युग अनुरूप बना दिहीस। जे समय ये गरंथ लिखे गईस ओ समय देस म मुसलमान मन के सासन रहिस। fहंदू मन के मन म निरासा के भावना घर करे लग गे रहिस। तुलसीदास जी भारत के अतीतकाल, सांसकिरितिक गौरव अउ आदरस जीवन के चित्रन कर आसा अउ बिसवास के दिया जला दिहिस।
रामचरितमानस म तुलसीदास जी ह राम भगवान के समग्र रूप के चित्रन करे हावय। ये महाकाब्य के कथा सात काण्ड म बंटे हावय। बाल काण्ड से ले के उत्तर काण्ड तक भगवान राम के जीवन के सबो अंग ल बड़ सुघ्घर ढंग ले बरनन करे हावय।
रामचरितमानस म आदरस जीवन के निरबाह ही नई होवय हे बल्कि ये ह काब्य सौन्दर्य के दिरिस्टि ले घलो एक आदर्स गरंथ हावय। ये महाकाव्य के नायक भगवान बिस्नु के अवतार सिरी राम हावय। जे ह भगवान के अवतार मनखे रूप म हे। जेखर से मनखे के जीवन म आने वाला सुख-दुख के ल ग्रहन करत जाथे। चौदह बछर के बनवास, ददा के मरनी के दुख, अरधांगिनी के अपहरन के दुख, भाई लछमन के मुर्छा के दुख अउ युद्व म नरसंहार के दुख अउ आखिरी म अपन अरधांगिनी सिता से हमेसा बर बिछुड़े के दुख सबला सहन करत जाथे काबर के भगवान ह इहां पिरिथिवी लोक म भगवान नई ये वो ह एक मनखे ये।
समन्वयभाव रामचिरतमानस के सबले बड़े बिसेसता हे। तुलसीदास जी के सब्बों काब्य ल ही समन्वय के बिराट चेस्टा के संज्ञा देहे गये हावय। ये समन्वय हर जगह बियाप्त हावय। दो बिरोधी भाव के समन्वय हावय। तुलसीदास जी के समय सैव अउ बैसनव संपरदाय म ओ समय लड़ाई ह जोर पकड़ रहिस। त तुलसीदास जी रामचरितमानस म समन्वय अस्थापित करे बर बानकांड म भगवान संकर के मुख ले कहलवाईस के
जासु कथा कुम्भज रिशि गाई, भगति जासुमैं मुनिहि सुनाई।
सोई मम ईस्ट देव रघुबीरा, सेवत जाही सदा मुनी धीरा।। बालकांड 62-4
अईसनहे भगवान राम के मुख से भगवान संकर के परती कहलवाई-
1- सिव द्रोही मम भगत कहावा, सो नर सपनेहॅंु मोंहि न पावा।
संकर विमुख भगति चह मोरी, सो नारकी मूढ़ मति थोरी।। लंकाकांड दोहा-2-4
2- संकर प्रिय मम द्रोही, सिव द्रोही मम दास।
ते नर करहि कलप भरि घोर नरक महुॅं बास।। लंकाकांड दोहा-3
तुलसीदास जी ह ज्ञान अउ भक्ति म घलो समन्वय करे हावय। रामचरितमानस म सब्बो रस के चित्रन हावय। येमा भाखा साहित्यिक अवधि हावय जेमा संसकिरित के पदावली के बिसेस परभाव हावय। भक्ति के पराधीनता के कारन काब्य के अंगी रस सांत रस बन गे हावय। परसंग के अनुकूल प्रसाद, ओज, माधुर्य गुन ल घलो अस्थान मिले हावय। गुन ह रस के अभिन्न अंग हावय। छंद म दोहा अउ चौपाई के घलो बिसेस परयोग तुलसीदास जी ह अपन रामचरितमानस म करे हावय। भाखा के सौन्दर्य वरधन म अलंकार अउ सब्दसक्ति के घलो सुघ्घर बरनन हे।
ये परकार ले देखा जाये त गोस्वामी तुलसीदास जी के रामचरितमानस समन्वयवादी रचना के पराकास्टा हावय। जेमा हर दिरिस्टि ले समन्वय हावय। अगर ये कहे जाये के रामचरितमानस हिन्दीर साहित्य के सबो बिधा के सार ह त वो ह अतिसोक्ति नई होही। काबर के पहिली तो ये रचना एक महाकाब्य ये जेमा नायक भगवान राम के पूरा जीवन के बरनन हावय जेमा नायक ह एक आदरस बेटा, भाई, राजा, मित्र, पति,सत्रु। येखर संगे-संग रामचरितमानस म दसो रस के परिपाक देखे बर मिलथे। अजोध्या काण्ड म सांत रस, बाल काण्ड म भगवान राम के संगे-संग भरत, लछमन अउ सत्रुघन बर उंखर माता कौसिलिया, कैकेई, अउ सुमित्रा के बात्सल्य म बात्सल्य रस के बिसद बरनन । राम जी के बनवास जाय के बेरा ओखर ददा-दाई के अउ परजा मन के मन के पीरा, राजा दसरथ के मरनी के सोर सुनके राम जी के मन के पीरा म, असोक बाटिका म माता सिता के भगवान राम के परति बिलाप म करून रस, सिव धनुस टुटे के बेरा भगवान परसुराम अउ लछमन के संवाद म रौद्र रस, माता सिता के पुश्प बाटिक म ओखर fसंगार के बरनन म fसंगार रस, बनवास के समय सुरपनखा के नाक काटे के बेरा म बिभत्स रस, हनुमान जी के अगास के रद्दा लंका जाये के बेरा, हनुमान जी के लंका दहन के बेरा, राम रावण युद्ध म बीर योद्धा मन के बीरता के बरनन म बीर रस, कुंभकरन के युद्ध म लड़े के बेरा ओखर सरीर के बरनन म भयानक रस, सुंदर काण्ड म हनुमान जी ह जब रावन के लंका म लंका दहन करे के पहिली जब रावन के सैनिक मन हनुमान जी के पूछी म आगी लगाये बर पूंछी म चेंदरा बांधत रईथे तेतका बेरा हनुमान जी अपन पूंछी ल अउ लंबा करत जाथे त रावन के संतरी मन ह चेंदरा लपेटत-लपेटत थक जाथे तेतका बेरा हास्य रस के सुघ्घर बरनन हावय। येखर संगे-संग अलंकार, दोहा, रोला, सोरठा, चौपाई हिन्दीड ब्याकरन के सबो चीज येमा मिलथे। रामचरितमानस ह fहंदू मन के परबित्र अउ पूजनीय गरंथ हावय जेहा हर fहंदू धरम ल मानने वाला के घर म जरूर रईथे। तभो ले जेमन ये गरंथ ल नई पूजय वोमन घलो येला हिन्दीय साहित्य के इतिहास के एक किताब के रूप म ज्ञान पराप्ति बर जरूर पढ़य। येमा हर छे के प्रबंधन कला के ज्ञान मिलथे। कहे जाथे के पढ़ईया लईकन मन परतिदिन सुंदरकांड के पाठ करथे त ओखर दिमाग ह तेज होथे। इस्कूल अउ कालेज के पाठ्यपुस्तक घलों म तुलसीदास जी के रामचरितमानस ल घलो रखे गे हावय।
हमर देस राज म क्वांर नवरात्रि के नवमीं के बाद दसमी तिथि के दिन रावन बध किये जाथे जेमा रावन अधरम के परतीम रूप म ओखर पुतला दहन करथन। येखर पहिली नव दिन दुर्गा उपासना करथन अउ रामलीला घलो संगे-संग चलथ रईथे ये राम लीला ह तुलसीदास जी के रामचरितमानस ल ही नाटक के रूप म मंचन किये जाथे। हमर छत्तीसगढ़ देस राज म कातिक महिना अउ ओखर बाद नवधा रमायन ह गांवो-गांव म होय लगथे येहू म तुलसीदास जी के रामचरितमानस के पाठ किये जाथे। कहे के मतलब ये हावय के तुलसीदास जी रामचरितमानस जईसे गरंथ ल अवधी भाखा म लिख के जेतका परसिद्धी पाईस वईसनहा हिन्दीं साहित्य का पूरा बिस्व के साहित्य के इतिहास म कोनो साहित्यकार ह नई पाय हावय। वो राम के चरित ल हर मानस के हिरदय म बसा दे हे हावय।
प्रदीप कुमार राठौर ‘अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा (छ.ग.)